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କରୋନାରେ ଆଖି ବୁଜିଲେ ପ୍ରଖ୍ୟାତ ସାୟର ରାହତ ଇନ୍ଦୋରୀ

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ୟେ ଦୁନିୟା ଛୋଡନା ମଂଜୁର , ୱତନ କୋ ଛୋଡ କର ଜାନେ କା ନହିଁ  

ଇନ୍ଦୋର(ଏଜେନ୍ସି)  

अब ना मैं हूँ, ना बाकी हैं ज़माने मेरे​,

फिर भी मशहूर हैं शहरों में फ़साने मेरे​,

ज़िन्दगी है तो नए ज़ख्म भी लग जाएंगे​,

अब भी बाकी हैं कई दोस्त पुराने मेरे।

......

लू भी चलती थी तो बादे-शबा कहते थे,

पांव फैलाये अंधेरो को दिया कहते थे,

उनका अंजाम तुझे याद नही है शायद,

और भी लोग थे जो खुद को खुदा कहते थे।

.......

हाथ ख़ाली हैं तेरे शहर से जाते जाते,

जान होती तो मेरी जान लुटाते जाते,

अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है,

उम्र गुज़री है तेरे शहर में आते जाते।

.........

चेहरों के लिए आईने कुर्बान किये हैं,

इस शौक में अपने बड़े नुकसान किये हैं,​

महफ़िल में मुझे गालियाँ देकर है बहुत खुश​,

जिस शख्स पर मैंने बड़े एहसान किये है।

.....

आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो,

ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो,

एक ही नदी के हैं ये दो किनारे दोस्तो,

दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो।

ଏପରି ଶବ୍ଦର ଚାତୁରୀରେ ସୁନ୍ଦର କବିତା ଆଉ ସାୟରି ଶ୍ରୋତାଙ୍କ ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟରେ ପାରସୀ ଦେଇଥିବା ପ୍ରସିଦ୍ଧ କବି ଡକ୍ଟର ରାହତ ଇନ୍ଦୋରୀ  କରୋନା ଜୀବାଣୁ ସଂକ୍ରମଣରେ ଆଖି ବୁଜି ଦେଇଛନ୍ତି । ଭାରତୀତ ସାହିତ୍ୟ ଓ କଳା ଆକାଶରୁ ଉଭେଇଗଲେ  ଜଣେ ବହୁଧା ତଥା ବିବିଧ ପ୍ରତିଭା ସମ୍ପନ୍ନ ପ୍ରଖ୍ୟାତ କବି, ଗୀତିକାର, ଜଣେ ଚିତ୍ରଶିଳ୍ପୀ | ନୀରବି ଗଲା ବର୍ତ୍ତମାନ ସମୟର ଏକ ଶକ୍ତିଶାଳୀ ବ୍ୟଙ୍ଗ ସ୍ୱର  | 

କରୋନା ପଜିଟିଭ ଚିହ୍ନଟ ହେବା ପରେ ତାଙ୍କୁ ଚିକିତ୍ସା ପାଇଁ ଅରବିନ୍ଦୋ ଡାକ୍ତରଖାନାରେ ଭର୍ତ୍ତି କରାଯାଇଥିଲା। ଆଉ ରାହତ ଇନ୍ଦୋରୀ ନିଜେ ଟୁଇଟ୍ କରି ଏହି ସୂଚନା ଦେଇଥିଲେ | ଏପରିକି ତାଙ୍କ ମସ୍ଥ୍ୟ ବିଷୟରେ ପଚାରି ତାଙ୍କ ପରିବାରବର୍ଗଙ୍କୁ ହଇରାଣ ନକରିବା ପାଇଁ ସେ ଟୁଇଟ କରି ଅନୁରୋଧ କରିଥିଲେ | ସେ ତାଙ୍କ ସ୍ୱାସ୍ଥ୍ୟ ଅବସ୍ଥା ସମ୍ପର୍କରେ ଟୁଇଟ କରି ନିଜେ ଜଣାଇବେ ବୋଲି କହିଥଲେ | ହେଲେ ଶେଷରେ ସେ ଚିକିତ୍ସାଧୀନ ଅବସ୍ଥାରେ ଆଖି ବୁଜିଦେଇଛନ୍ତି | 

"जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगे

किराएदार हैं ज़ाती मकान थोड़ी है

 

सभी का ख़ून है शामिल यहां की मिट्टी में

किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है"

 

"बुलाती है मगर जाने का नईं

वो दुनिया है उधर जाने का नईं

 

है दुनिया छोड़ना मंज़ूर लेकिन

वतन को छोड़ कर जाने का नईं

 

जनाज़े ही जनाज़े हैं सड़क पर

अभी माहौल मर जाने का नईं

 

सितारे नोच कर ले जाऊंगा

मैं ख़ाली हाथ घर जाने का नईं

 

मिरे बेटे किसी से इश्क़ कर

मगर हद से गुज़र जाने का नईं

 

वो गर्दन नापता है नाप ले

मगर ज़ालिम से डर जाने का नईं

 

सड़क पर अर्थियां ही अर्थियां हैं

अभी माहौल मर जाने का नईं

 

वबा फैली हुई है हर तरफ़

अभी माहौल मर जाने का नईं"

 

"ज़ुबां तो खोल, नज़र तो मिला, जवाब तो दे

मैं कितनी बार लुटा हूं, मुझे हिसाब तो दे"

 

"लोग हर मोड़ पे रुक रुक के संभलते क्यों हैं

इतना डरते हैं, तो घर से निकलते क्यों हैं"

 

"शाखों से टूट जाएं, वो पत्ते नहीं हैं हम

आंधी से कोई कह दे कि औकात में रहे"

 

"एक ही नदी के हैं ये दो किनारे दोस्तों

दोस्ताना ज़िंदगी से, मौत से यारी रखो"

 

"प्यास तो अपनी सात समंदर जैसी थी

नाहक हमने बारिश का एहसान लिया"

 

 

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